नज़राना इश्क़ का (भाग : 05)
नज़राना इश्क का! (भाग : 05)
सुबह होने ही वाली थी, इससे पहले सूरज भगवान बादलों को चीरते हुए आसमान में बाहर को निकल पाते चिड़ियों ने चहचहाना शुरू कर दिया था। एक नई सुबह का आगाज हो चुका था, धीमी गति से शीतल हवा बह रही थी! वातावरण बिल्कुल ही शांत था, मंदिरों में बजने वाली घंटी का हल्का शोर था जो बार बार इस शांति का खंडन किये जा रहा था।
"काश! तेरे फालतू कहानियों की तरह तू भी फालतू नहीं होता! जब भी तुझे देखती हूँ मुझे लगता है तू बहुत अच्छी एक्टिंग कर रहा है…… कुम्भकर्ण की! उठ जा घोंचू..!" जाह्नवी ने निमय की चादर खींचते हुए ऊँचे स्वर में कहा। प्रत्युत्तर में निमय के खर्राटों का स्वर और तेज हो गया, उसके होंठो पर हल्की मुस्कान थम गई।
"ये तो अच्छा है कि मेरा घर हिमालय के पास नहीं पड़ता, वर्ना इतना भयंकर कानफाड़ू आवाज सुनने के बाद तो सारी बर्फ ही पिघल जाती! हे भगवान कहाँ फंसा दिया मुझ मासूम को!" जाह्नवी ने बिस्तर को एक लात जड़ दिया, और फिर अपने पैर को सहलाते हुए बगल के चेयर पर बैठ गयी।
"उठ जा…! कसम से अगर इतनी देर मैं कुम्भकर्ण को जगाती तो वो बिचारा जाग जाता मगर इनका देखो….. !" कुर्सी पर बैठी हुई जाह्नवी फिर से अपना बक बक पुराण शुरू कर दिया, अगर इतना बकबक नींद की आत्मा सुन लेती तो जरूर परलोक सिधार चुकी होती, पर ये तो जाह्नवी की रोज की आदत थी।
दूसरे कमरे में जाह्नवी का चिल्लाना सुनकर उसके मम्मी पापा भी जग चुके थे, दरअसल ये उनकी दिनचर्या थी पूरा घर जाह्नवी के बकबक पुराण शुरू होने के साथ ही उठता था, पर उसका भाई निमय, मजाल कि वो उठ जाए।
"लो संभालो अपनी लाड़ली को, फिर से शुरू हो गयी!" मिसेज़ शर्मा ने उठकर बैठते हुए शिकायती लहजें में कहा।
"हमारी अकेले की तो लाड़ली नहीं है वो, आप ने भी उन दोनों को कभी नहीं रोका!" शर्मा जी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"मुझे पता था आप उसी की साइड लोगे, अरे निमय भी हमारा ही बेटा है..!" मिसेज शर्मा ने मुँह बना लिया।
"अरे शर्माइन! नाराज काहें हो रहीं है! आपको तो पता है भाई बहिन ऐसे ही होते हैं। अब हम अपने बच्चों से उनका बचपन, उनका बचपना तो नहीं छीन सकते हैं ना! बाप हैं हम उनके, विलन नहीं!" शर्मा जी मुस्कुराते हुए कहा।
"जाओ जी! रोज का यही बहाना है आपका, किसी दिन कुछ हुआ न तो….!"
"अरे राम! राम! अब तक तो नहीं हुआ न? जो नहीं होने वाला उसकी फ़िकर काहे करती हैं आप! हमें अपने बच्चों पर पूर्ण विश्वास है, हमारा प्यार और संस्कार बहता है इनकी नसों में, अपने दूध पर इतना तो विश्वास रखिये न शर्माइन!" शर्मा जी ने उठकर लुंगी बांधते हुए कहा।
"क्या बोलें, आप बाप बेटी से कौन जीत पाया है जो हम जीतेंगे!" मिसेज शर्मा ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा।
"अरे अब काहे नाराज हो रही हैं जी! जाइये अच्छा अब नाश्ता बनाइये, हमको भी अब नहा धोके, पूजा पाठ करके जाना है ना! आज भूखे मारने का इरादा है क्या?" शर्मा जी ने छेड़ते हुए कहा।
"धत्त नहीं तो…!" कहते हुए मिसेज शर्मा कमरे से बाहर निकली और किचन की ओर बढ़ गयी। शर्मा जी भी उठकर स्नानादि करने चल दिये।
"सो ले, तू सो ही ले! वो कुम्भकर्ण नहीं सो पाया था, उसका हिस्सा भी सो ले!" जाह्नवी अभी भी बक बक करने में लगी हुई थी।
"ये मत समझना कि मैं रोज सुबह तुझपर अपना गुस्सा उतारती हूँ, तेरे जैसे फालतू के आलसियों से बहस करने का टाइम नहीं है मेरे पास! नहाने जा रही हूँ समझे…! हुंह..!!" कहते हुए जाह्नवी भी कुछ कपड़े लेकर बाथरूम की ओर बढ़ गयी, अब तक शर्मा जी स्नानादि कर पूजा करने में लगे हुए थे।
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वहां से थोड़ी दूर, शहर के दूसरे कोने में जहां भीड़भाड़ बेहद कम रहती थी। फरी टेरेस पर टहल रही थी, उसके हाथों में उसकी प्यारी डायरी थमी हुई थी, जिसमें वह कुछ बना रही थी। पास की एक छोटी टेबल पर एक कप गर्मागर्म चाय रखी हुई थी, जिससे निकल रही भाप मानो आसमान को चूम लेने को बेचैन थी। डायरी के पन्नों में खोई हुई फरी को अचानक खबर हुई कि उसकी चाय ठंडी होने वाली है, उसने डायरी को एक किनारे रखा और दोनो हाथों से कप पकड़ लंबे घूंट मारने लगी।
"ओ माय गॉड! मैं तो लेट होने वाली हूं, मुझे जल्दी जाना होगा नहीं तो बस छूट जाएगी।" मन ही मन बड़बड़ाते हुए फरी तेजी से अपने कमरे में घुसी और थोड़ी ही देर में बाहर निकलते हुए नीचे जाने के लिए सीढ़ियों से उतरने लगी।
"चलो बिट्टू हम आपको आपके कॉलेज तक छोड़ देते हैं!" जैसे ही फरी आखिरी सीढ़ी से उतरी उसे यह स्वर सुनाई दिया।
"बाबा आप? आप यहां क्या कर रहे हैं!" फरी ने उस व्यक्ति की ओर हैरानी से देखा, उस व्यक्ति के आधे से ज्यादा दाढ़ी बाल सफेद हो चुके थे, होंठो पर मंत्रमुग्ध कर देने वाली मुस्कान फैली हुई थी, शरीर पर सफेद कुर्ता और नीला कोट था। उनके पीछे एक लाल रंग की फरारी कार खड़ी थी, जिसकी चाबी उनके हाथों में थी।
"बस बिटिया के बिन दिल नहीं लगा तो चले आए!" बाबा ने मुस्कुराते हुए कहा।
"अगर बस मिलने आए हैं तो ठीक है बाबा! मगर आप इसके अलावा किसी और उद्देश्य से आए होंगे तो क्षमा चाहती हूं!" कहते हुए फरी उनके करीब पहुंच गई।
"कम से अपने बाबा से तो रूखे रूखे स्वर में बात न करो बिट्टू! तुम्हारे अलावा हमारा है ही कौन? सब तो छोड़कर चले ही गए..."
"ऐसा मत बोलना बाबा!" फरी ने उनके होठों पर उंगली रख चुप कराते हुए कहा, उसकी आंखो में आंसू छलछला गए। "मैं हूं ना..! मेरा भी कौन है!"
"तुम्हारा रूखापन हमारे दिल को छीलता है बिट्टू! जानती हो न..?" बाबा ने फरी की आंखो में झांकते हुए कहा।
"हम आपसे नाराज नहीं हैं बाबा! और आपसे कभी नाराज होंगे भी नहीं! बस अब ये मत कहना कि आप मुझसे मिलने अपनी मर्जी से नहीं बड़े साहब के ऑर्डर पर आए हैं।" फरी ने जमीन की ओर देखते हुए कहा।
"तुम तो जानती हो बिटिया, हम बिना आपके पापा के इजाजत के कुछ नहीं कर सकते!" बाबा ने अपनी बेबसी जाहिर की।
"तो क्या कहा आपने बड़े साहब ने? दुनिया के सारे सुख देकर मुझे भी उनकी तरह दौलत की भूखी बना दो?" फरी का लहजा उग्र हो गया, उसके भाव बदलने लगे।
"ऐसा नहीं है बिट्टू? आप समझते क्यों नहीं हो?" बाबा ने चिल्लाकर कहना चाहा मगर उनके शब्द गले में ही घुटकर रह गए।
"क्या कहना है बाबा? बोलिए न? यही न कि वो जो कर सकते थे उन्होंने किया। पर मैं इतनी भी छोटी नहीं थी बाबा, मेरी नजर में जो इंसान अपने परिवार से ज्यादा पैसों को अहमियत दे उससे दूर ही रहना चाहिए!" फरी की आँखों से आंसू लुढ़कते हुए गालों तक आ पहुंचे, हल्की धूप में आंसू के कारण उसके गाल सुर्ख लाल चमक रहे थे।
"वो उनके लाइफ की…"
"...सबसे जरूरी मीटिंग थी, अगर उसे छोड़ देते तो आज शहर के सबसे बड़े बिजनेसमैन नहीं होते! बहुत बार सुन चुकी हूं बाबा, सात साल की थी तब से यही तो सुनते आ रहीं हूं। ये बिजनेस तो फिर से आ जाता मगर मेरी मां…!" फरी लंबी लंबी सांसे लेते हुए अटकते हुए बोली। "खैर जाने दीजिए आप उनका नमक खाते हैं, उनके गुण तो गायेंगे ही, चलिए मुझे जाना है लेट हो रहा है।"
"बिट्टू….! फरी बेटा..! देखो हम जानते हैं बड़े साहब ने स्थिति की गंभीरता को न समझते हुए हॉस्पिटल के बजाए मीटिंग में जाना उचित समझा पर जो होना होता है, हो ही जाता है, होनी को कौन टाल सकता है? अब तो तुम उन्हें माफ कर दो!" बाबा के स्वर में जमाने भर की भावनाएं उमड़ रही थी, वो उस दिन से ही फरी के इस हाल को जानते थे मगर वो इस बात को कब भूलेगी, और आगे बढ़ेगी इसका आज भी इंतजार था।
"माफ तो कब का कर दिया है बाबा! माफ तो कब का कर दिया…!" कहते हुए फरी वहां से बस स्टैंड जाने के लिए बढ़ी।
"अरे आज तो हमारे साथ चलो, कल से बस से चली जाना!" बाबा ने धीमे से मुस्कुराते हुए कहा।
"नहीं बाबा! हमे आपके बड़े साहब की दौलत और शोहरत से कोई वास्ता नहीं रखना है, भगवान ने हमें भी हाथ पैर दिए हैं और आपकी मेहरबानी से हमें चलना दौड़ना लड़ना सब आता है।" फरी ने बिना पीछे मुड़े ही जवाब दिया।
"तो क्या अब अपने बाबा से भी दूर दूर रहने का इरादा कर लिया है बिट्टू?" बाबा ने एक क्षण ठहरकर उदासी भरे स्वर में पूछा। "कम से कम आज भर हमारे साथ चलिए, फिर कोई जबरदस्ती नहीं करेंगे।"
"नहीं बाबा! बस आप ही तो हो जो हमें अपनी बिटिया कहता है, आपके अलावा इस दुनिया में कौन है मेरा?" फरी अपने स्थान पर जड़वत खड़ी रह गई।
"तो फिर आज भर चलिए हमारे साथ!" बाबा ने कार उसके बगल में खड़ी करते हुए कहा, फरी अब भी जस की तस खड़ी रही। "अब ज्यादा मत सोचिए बिट्टू नहीं तो लेट हो जायेगा आपको!" बाबा ने धीमे से हंसते हुए कहा।
"ठीक है बाबा! पर बस आज, और अगली बार जब आप मिलने आयेंगे तो प्लीज मेरे बाबा बनकर आइएगा, अपने बड़े साहब के ऑर्डर पर नहीं!" फरी ने कार का गेट खोलकर बैठते हुए कहा।
"जैसा आप कहोगी बिट्टू!" कहते हुए बाबा ने कार तेजी से सड़क पर दौड़ा दिया। थोड़ी ही देर बाद वो कॉलेज पहुंचने वाले थे, जहां जाह्नवी बस अभी ही अपने पापा की मोटरसाइकिल से उतरकर कॉलेज गेट के अंदर जा रही थी। इतनी महंगी कार को देखकर सभी की आँखें चौड़ी होने लगी, क्योंकि यह कॉलेज सामान्य स्तर के छात्रों के लिए था। जाह्नवी ने पहले कार पर ध्यान नहीं दिया पर कार से उतरते फरी को देखा तो उसकी भौंहे चढ़ गई।
'वाह! अब कॉलेज, कॉलेज नहीं रहा, अमीरों का टूरिज्म सेंटर बनता जा रहा है, देखो तो देवी जी का, चार दिन हुए नहीं… कल क्या हेलीकॉप्टर से आने क्या इरादा है?' मन ही मन भुनभुनाते हुए जाह्नवी सीढ़ियों को चढ़ते हुए अपनी क्लास की ओर बढ़ गई, ना जाने क्यों उसे फरी से खिन्न मचने लगी थी।
क्रमश:......
shweta soni
29-Jul-2022 11:35 PM
Nice
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🤫
26-Feb-2022 02:15 AM
ये फरी का अतीत भी कुछ घुमाव दार लग रहा है। निमय और जानी की नोमझोंक कहानी को सरस वना रही है। हास्य से भरपूर कहानी अपना एंटरटेन बखूबी कर रही है। बहुत खूबसूरत कहानी लिखी है आपने ।कीप इठ अप....👍
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मनोज कुमार "MJ"
26-Feb-2022 12:12 PM
Thank you so much ❤️
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Seema Priyadarshini sahay
16-Jan-2022 10:00 PM
बहुत ही सुंदर भाग
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मनोज कुमार "MJ"
18-Jan-2022 07:11 AM
Thank you
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